Monday, September 26, 2011

मेरे बालिद .........


                    

मेरे बालिद .........एक दिन सुबह -२ मेरे बालिद ने मुझसे सवाल  पूछा...,?,,,
अरुण जहाँ तक मुझे पता है  तुम्हारी पदाई समाप्त हो चुकी है और ...तुम अपना स्वयं का व्यवसाय 
भी कर रहे हो ... फिर क्यों ये रात दिन किताबों के पीछे भागते रहते हो ..... 
अरुण ने कहा पिताजी ...कर्म करना मेरा कर्त्तव्य है  ..और ..पदाई मेरा शोक हे 
...मेरे बालिद ने हस्ते हुए कहा , वाह  बेटा  अरे ये  भी कोई शोक है - तुम्हारी उम्र के लोग  क्या -२  शोक करते है कोई सिगरेट पीता है ,कोई दारू  पीता  है ,,और तुम हो जो .पदाई का शोक रखते हो ...
वाह  बेटे मुझे आज यकीन हो गया के अच्छे संस्कार देने वाले ,,अगर घर में हो तो कभी उनके बच्चे 
गलत राह नहीं चुनते है और अपने  बालिद का सर हमेशा मेरी तरह फक्र से ऊँचा करते  है .....अब आप ही फैसला करो आप कोन सा शोक रखते है ..न जाने तुम्हारे बालिद तुमसे कैसी उम्मीद रखते है ....

                                                                                           >बी.एस .गुर्जर <

3 comments:

  1. aap ka ye lekh un logon ke liye shayad ek seekh ho sakta hai, jinhe apne farz, apne sanskaron ki koi parwaah nahi hoti..mai ummid karungi ki aap is lekh ke madhyam se aise logon ki aankhon se besharmi ka parda utha kar unhe zindagi ke sahi mayne sikha sake.

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  2. bah..... sach mein sahi baat likhhi ha apne... apne aap se ye prshna sab ko karna chahiye

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  3. बहुत ही प्रेरक पोस्ट.

    कभी मेरे ब्लॉग पर भी आयें.
    www.belovedlife-santosh.blogpost.com (हिंदी कविता)
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