Monday, July 30, 2012

तुम मिसरी सी मीठी ..


तुम मिसरी सी मीठी ..
क्यों अंगूर बन जाती हूँ ...
कभी खट्टी तो कभी मीठी हो जाती हो .....

क्यों हर बार मेरा गुनाह याद दिलाती हो
मुझे तो याद नहीं रहती ,
क्यों शादी की सालगिरह मुझे याद दिलाती हो....

हर बात कहती हो मुझे कुछ नहीं चाहिए ,
हम ज्यादा खर्च नहीं करेंगे ,
और हर बार मेरा बैंक खता साफ कर जाती हो

तुम मिसरी सी मीठी ..
क्यों अंगूर बन जाती हूँ .
कभी खट्टी तो कभी मीठी हो जाती हो

क्यों  हर बार मेरा गुनाह याद दिलाती हो
क्या तुम्हे मायके की याद नहीं आती,
 हर एक त्यौहार ससुराल में मानती हो
क्यों  हर बार मेरा गुनाह याद दिलाती हो .....


          ...B.S.Gurjar ..

Thursday, January 12, 2012

ढलते हुए सूरज की धुप उछालते हुए,.....



ढलते हुए सूरज की धुप उछालते हुए,
पेड़ों की पत्तियों पे एक सुनहरी चादर बुन रही हे

पंछी  अपने घोसलों में लोटने की होड़ में लगे हे
कुछ थके से है तो कुछ मस्ती में उड़े जा रहे हे

छोटे -२ चूजे अपनी छोटी सी चोंच खोले,
 न जाने ममता की कोनसी भाषा में बोल रहे हे

गुस्सेल से वादल कुछ पल तो, ठहरे से लग रहे हे
नीले पीले से बदल नभ में इन्द्रधनुष बुन रहे हे

जी तो चाहता है इस नीली -पीली धुप को ,
अपने हाथों में समेट लूँ ...
इस हँसीं लम्हे को
 अपनी यादों में,कैद करलूँ  ...
.
 B.S.Gurjar