ढलते हुए सूरज की धुप उछालते हुए,
पेड़ों की पत्तियों पे एक सुनहरी चादर बुन रही हे
पेड़ों की पत्तियों पे एक सुनहरी चादर बुन रही हे
पंछी अपने घोसलों में लोटने की होड़ में लगे हे
कुछ थके से है तो कुछ मस्ती में उड़े जा रहे हे
छोटे -२ चूजे अपनी छोटी सी चोंच खोले,
न जाने ममता की कोनसी भाषा में बोल रहे हे
गुस्सेल से वादल कुछ पल तो, ठहरे से लग रहे हे
नीले पीले से बदल नभ में इन्द्रधनुष बुन रहे हे
जी तो चाहता है इस नीली -पीली धुप को ,
अपने हाथों में समेट लूँ ...
इस हँसीं लम्हे को
अपनी यादों में,कैद करलूँ ...
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B.S.Gurjar
B.S.Gurjar
सुन्दर प्रविष्टि , सुन्दर भावाभिव्यक्ति, आभार.
ReplyDeleteपधारें मेरे ब्लॉग पर भी और अपने स्नेहाशीष से अभिसिंचित करें मेरी लेखनी को, आभारी होऊंगा /
गुर्जर जी सुंदर प्रयास है ....
ReplyDeleteजारी रखें ....
word verification hta lein ....
marvelous poet you are
ReplyDeletethanks pari....
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