Thursday, January 12, 2012

ढलते हुए सूरज की धुप उछालते हुए,.....



ढलते हुए सूरज की धुप उछालते हुए,
पेड़ों की पत्तियों पे एक सुनहरी चादर बुन रही हे

पंछी  अपने घोसलों में लोटने की होड़ में लगे हे
कुछ थके से है तो कुछ मस्ती में उड़े जा रहे हे

छोटे -२ चूजे अपनी छोटी सी चोंच खोले,
 न जाने ममता की कोनसी भाषा में बोल रहे हे

गुस्सेल से वादल कुछ पल तो, ठहरे से लग रहे हे
नीले पीले से बदल नभ में इन्द्रधनुष बुन रहे हे

जी तो चाहता है इस नीली -पीली धुप को ,
अपने हाथों में समेट लूँ ...
इस हँसीं लम्हे को
 अपनी यादों में,कैद करलूँ  ...
.
 B.S.Gurjar

4 comments:

  1. सुन्दर प्रविष्टि , सुन्दर भावाभिव्यक्ति, आभार.

    पधारें मेरे ब्लॉग पर भी और अपने स्नेहाशीष से अभिसिंचित करें मेरी लेखनी को, आभारी होऊंगा /

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  2. गुर्जर जी सुंदर प्रयास है ....
    जारी रखें ....


    word verification hta lein ....

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